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{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मदन कश्यप}} {{KKCatKavita}}<poem>एक बड़ा सा एअर -बैग है
जिसे हम कहते हैं हवाई थैला
यह केवल अनुवाद नहीं है हमारी भाषा में
इसके हवाई होने का अपना अर्थ है
इस थैले में सिमट आता है
हमारा छोटा -सा संसार जरूरी ज़रूरी कपड़े
अगल बगल के खलों में किताबें
ब्रश और रेजर
नहाने का साबुन
जूते पोंछ कर फेंक देने के लिए
पुरानी फटी गंजियों के कुछ टुकड़े
पत्नी की हिदायतें
और फ्रेम से बाहर निकल कर
बोलने -बतियाने वाली फ्रेंच पेण्टिंग की एक जोड़ी आंखें आँखें बेहद कठिन समय और दुर्गम यात्रााओं यात्राओं में भी
मुझे एकटक निहारती होती हैं
इस हवाई थैले को और गहरा और रहस्यमय बनाती हुई
जहाँ हमेशा ही चीज़ों से ज़्यादा होती है यादें
और हर बार जिस तरह हमारा एक हिस्सा
छूट जाता है सफ़र पर जाने से
उसी तरह उन तमाम चीज़ों का कुछ-कुछ थैले में होता है
जो हमारे साथ यात्रा में नहीं होतीं
यह जानते हुए कि इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है
हर बार अपने ज्ञान से ज्यादा ज़्यादा हम इस थैले पर यकीन यक़ीन करते हैं
और यह हवाई थैला भी कुछ न कुछ तो ऐसा रखता ही है
कि उम्मीद न टूटे
कई बार स्मृतियां स्मृतियाँ ही कुछ खिला -पिला देती हैं
यह होता है
तो बेहद अकेलेपन में भी
अकेला नहीं होने देता
यह जितना पुराना है
उससे कहीं ज्यादा ज़्यादा पहले का है हमारा रिश्ता
वह तो तभी जुड़ गया था
जब हमारे कंधे में पैदा हुई थी
थैला लटकाने की आकांक्षा
हम कपड़े के पुराने झोले में देखा करते थे इसका अक्स
एक दिन ऐसा आया जब मन को कड़ा किया
और अपने कस्बाई क़स्बाई घर का सारा दुःख इस थैले में डाल कर चले आये आए दिल्ली यहां यहाँ रहते हुए कुछ दिनों बाद पता चला जितना दुःख हम थैले में ले आये आए उतना ही रह गया है वहां वहाँ इस तरह देखते -देखते दूना हो गया दुःख!</poem>