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|रचनाकार=चन्द्रकान्त देवताले
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विकट कवि-कर्म जोखिम भरा
उलटा-पुलटा हो जाता कभी-कभी
धरती का रस निचोड़ने में
मशगूल लोगों के
खुशामदी ख़ुशामदी लालची धूर्त कपटी और हिंसक
चरित्र को उजागर करने के लिए
कवियों और पुरखों ने मदद ली
और भेजते हों लानत मनुष्य आचरण पर
तो बेशक क्षमाप्रार्थी हों सब कविगण !
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