भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कामना / विजेन्द्र

4 bytes removed, 15:55, 16 फ़रवरी 2011
दमकता ताँबा पा लिया
मैं हिम, पाषाण, धातु युग के पुनर्जागरण काल से
गुज़र कर यहा~म यहाँ तक आया हूँ
धातुओं को रूप बदलते पहली बर देखा
ओह... जैसे अग्नि की आत्मा चमक उठी हो
कितनी हैरत में हूँ
कहाँ देख पाऊँगा उन्हें
जो चकमक के ह्थौड़े हथौड़े से धातु को पीटकर
कुल्हाड़ों के फाल...
कुदालों...बर्छियों में बदल रहे थे
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,277
edits