Changes

ताण्डव / रामधारी सिंह "दिनकर"

3,766 bytes added, 09:49, 17 फ़रवरी 2011
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनकर }} {{KKCatKavita}} <poem> '''तांडव''' नाचो, हे नाचो, नटवर ! च…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=दिनकर
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>

'''तांडव'''


नाचो, हे नाचो, नटवर !
चन्द्रचूड़ ! त्रिनयन ! गंगाधर ! आदि-प्रलय ! अवढर ! शंकर!
::::नाचो, हे नाचो, नटवर !

::आदि लास, अविगत, अनादि स्वन,
::अमर नृत्य - गति, ताल चिरन्तन,
अंगभंगि, हुंकृति-झंकृति कर थिरक-थिरक हे विश्वम्भर !
::::नाचो, हे नाचो, नटवर !

::सुन शृंगी-निर्घोष पुरातन,
::उठे सृष्टि-हृंत्‌ में नव-स्पन्दन,
::विस्फारित लख काल-नेत्र फिर
::काँपे त्रस्त अतनु मन-ही-मन ।

स्वर-खरभर संसार, ध्वनित हो नगपति का कैलास-शिखर ।
::::नाचो, हे नाचो, नटवर !

::नचे तीव्रगति भूमि कील पर,
::अट्टहास कर उठें धराधर,
::उपटे अनल, फटे ज्वालामुख,
::गरजे उथल-पुथल कर सागर ।
गिरे दुर्ग जड़ता का, ऐसा प्रलय बुला दो प्रलयंकर !
::::नाचो, हे नाचो, नटवर !


::घहरें प्रलय-पयोद गगन में,
::अन्ध-धूम हो व्याप्त भुवन में,
::बरसे आग, बहे झंझानिल,
::मचे त्राहि जग के आँगन में,
फटे अतल पाताल, धँसे जग, उछल-उछल कूदें भूधर।
::::नाचो, हे नाचो, नटवर !


::प्रभु ! तब पावन नील गगन-तल,
::विदलित अमित निरीह-निबल-दल,
::मिटे राष्ट्र, उजडे दरिद्र-जन
::आह ! सभ्यता आज कर रही
::असहायों का शोणित-शोषण।
पूछो, साक्ष्य भरेंगे निश्चय, नभ के ग्रह-नक्षत्र-निकर !
::::नाचो, हे नाचो, नटवर !


::नाचो, अग्निखंड भर स्वर में,
::फूंक-फूंक ज्वाला अम्बर में,
::अनिल-कोष, द्रुम-दल, जल-थल में,
::अभय विश्व के उर-अन्तर में,

::गिरे विभव का दर्प चूर्ण हो,
::लगे आग इस आडम्बर में,
::वैभव के उच्चाभिमान में,
::अहंकार के उच्च शिखर में,

::स्वामिन्‌, अन्धड़-आग बुला दो,
::जले पाप जग का क्षण-भर में।
::डिम-डिम डमरु बजा निज कर में
::नाचो, नयन तृतीय तरेरे!
::ओर-छोर तक सृष्टि भस्म हो
::चिता-भूमि बन जाय अरेरे !
रच दो फिर से इसे विधाता, तुम शिव, सत्य और सुन्दर !
::::नाचो, हे नाचो, नटवर !

दिसम्बर १९३२

</poem>