भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'''यश मालवीय के गीत '''
'''कोई चिनगारी तो उछले '''
अपने भीतर आग भरो कुछ
अर्थों से बच कर क्यों निकले ?
'''गाँव से घर निकलना है '''
कुछ न होगा तैश से
दिन- रात पत्थर से ।
'''फूल हैं हम हाशियों के '''
चित्र हमने हैं उकेरे
'''ऐसी हवा चले '''
काश तुम्हारी टोपी उछले
ऐसी हवा चले ।
'''उजियारे के कतरे '''
लोग कि अपने सिमटेपन में
अपने ख़तरे हैं ।
'''परिचय '''
जन्म- 18 जुलाई 1962 (कानपुर)
Anonymous user