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{{KKRachna
|रचनाकार= श्रद्धा जैन
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नज़र में ख़्वाब नए रात भर सजाते हुए
तमाम रात कटी तुमको गुनगुनाते हुए

तुम्हारी बात, तुम्हारे ख़याल में गुमसुम
सभी ने देख लिया हमको मुस्कराते हुए

फ़ज़ा में देर तलक साँसों के शरारे थे
कहा है कान में कुछ उसने पास आते हुए

हरेक नक्श तमन्ना का हो गया उजला
तेरी छुअन थी कि जुगनू थे जगमगाते हुए

दिल-ओ-निगाह की साजिश जो कामयाब हुई
हमें भी आया मज़ा फिर फरेब खाते हुए

बुरा कहो कि भला पर यही हक़ीकत है
पड़े हैं पाँव में छाले वफ़ा निभाते हुए
</poem>
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