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सपने / बद्रीनारायण

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मुझे मेरे सपनों से बचाओ
 
न जाने किसने डाल दिए ये सपने मेरे भीतर
 
ये मुझे भीतर ही भीतर कुतरते जाते हैं
 
ये धीरे-धीरे ध्वस्त करते जाते हैं मेरा व्यक्तित्व
 
ये मेरी आदमीयत को परास्त करते जाते हैं
 
ये मुझे डाल देते हैं भोग के उफनते पारावार में
 
जो निकलना भी चाहूँ तो ये ढकेल देते हैं
 
ये मेरी अच्छाइयों को मारते जाते हैं मेरे भीतर
 
ये मेरी संवेदना, मेरी मार्मिकता, मेरे पहले को हतते जाते हैं
 
ये मुझे ठेलते जाते हैं एक विशाल नर्क में
मैं चीख़ता हूँ ज़ोर से
 
आधी रात
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