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'''प्रेम का सौदा'''

सत्य का जिसके हृदय में प्यार हो,
एक पथ, बलि के लिए तैयार हो ।

::फूँक दे सोचे बिना संसार को,
::तोड़ दे मँझधार जा पतवार को ।

कुछ नई पैदा रगों में जाँ करे,
कुछ अजब पैदा नया तूफाँ करे।

::हाँ, नईं दुनिया गढ़े अपने लिए,
::रैन-दिन जागे मधुर सपने लिए ।

बे-सरो-सामाँ रहे, कुछ गम नहीं,
कुछ नहीं जिसको, उसे कुछ कम नहीं ।

::प्रेम का सौदा बड़ा अनमोल रे !
::निःस्व हो, यह मोह-बन्धन खोल रे !

मिल गया तो प्राण में रस घोल रे !
पी चुका तो मूक हो, मत बोल रे !

::प्रेम का भी क्या मनोरम देश है !
::जी उठा, जिसकी जलन निःशेष है ।

जल गए जो-जो लिपट अंगार से,
चाँद बन वे ही उगे फिर क्षार से ।

::प्रेम की दुनिया बड़ी ऊँची बसी,
::चढ़ सका आकाश पर विरला यशी।

हाँ, शिरिष के तन्तु का सोपान है,
भार का पन्थी ! तुम्हें कुछ ज्ञान है ?

::है तुम्हें पाथेय का कुछ ध्यान भी ?
::साथ जलने का लिया सामान भी ?

बिन मिटे, जल-जल बिना हलका बने,
एक पद रखना कठिन है सामने ।

::प्रेम का उन्माद जिन-जिन को चढ़ा,
::मिट गए उतना, नशा जितना बढ़ा ।

मर-मिटो, यह प्रेम का शृंगार है।
बेखुदी इस देश में त्योहार है ।

::खोजते -ही-खोजते जो खो गया,
::चाह थी जिसकी, वही खुद हो गया।

जानती अन्तर्जलन क्या कर नहीं ?
दाह से आराध्य भी सुन्दर नहीं ।

::‘प्रेम की जय’ बोल पग-पग पर मिटो,
::भय नहीं, आराध्य के मग पर मिटो ।

हाँ, मजा तब है कि हिम रह-रह गले,
वेदना हर गाँठ पर धीरे जले।

::एक दिन धधको नहीं, तिल-तिल जलो,
::नित्य कुछ मिटते हुए बढ़ते चलो ।

पूर्णता पर आ चुका जब नाश हो,
जान लो, आराध्य के तुम पास हो।

::आग से मालिन्य जब धुल जायगा,
::एक दिन परदा स्वयं खुल जायगा।

आह! अब भी तो न जग को ज्ञान है,
प्रेम को समझे हुए आसान है ।

::फूल जो खिलता प्रल्य की गोद में,
::ढूँढ़ते फिरते उसे हम मोद में ।

बिन बिंधे कलियाँ हुई हिय-हार क्या?
कर सका कोई सुखी हो प्यार क्या?

::प्रेम-रस पीकर जिया जाता नहीं ।
::प्यार भी जीकर किया जाता कहीं?

मिल सके निज को मिटा जो राख में,
वीर ऐसा एक कोई लाख में।

::भेंट में जीवन नहीं तो क्या दिया ?
::प्यार दिल से ही किया तो क्या किया ?

चाहिए उर-साथ जीवन-दान भी,
प्रेम की टीका सरल बलिदान ही।

१९३५

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