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भूमि कठोर पै रात कटै कहाँए कोमल सेज पै नींद न आवत ।
कैं जुरतो नहिं कोदो सवाँ प्रभुए के परताप तै दाख न भावत ।।119।।
 
धन्य धन्य जदुवंश - मनि, दीनन पै अनुकूल।
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