हर सांस डगमगाती सी बेसुध हुई हुई है। <br><br>
गिरती है पर्वतों से ,सरपट वो दौडती है,<br>
प्रिय से मिलन को देखो पागल हुई हुई है।<br><br>
बदरी की बिजुरिया सी, अम्बर की दुलहनियां सी,<br>
बरसी है जब उमड कर सतरंग हुई हुई है।<br><br>
चन्दा की चांदनी सी,तारों की झिलमिली सी,<br>
उतरी है जब जमीं पर शबनम हुई हुई है। <br><br>
बाहों में प्रिय के आके हर दर्द भूल जाती,<br>
दिल में समायी ऐसे सरगम हुई हुई है।<br><br>
इक बूंद के लिए ही बनती है वो दीवानी,<br>
इक बूंद जब मिली तो मुक्ता हुई हुई है।<br><br>