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Kavita Kosh से
तपा-तपा कर कंचन कर दे ऐसी आग मुझे दे देना !
सारी खुशियाँ ले लो चाहे,तन्मय राग मुझे दे देना !
मेरे सारे खोट दोष सब, लपटें दे दे भस्म बना दो,
लिपटी रहे काय से चिर वह, बस ऐसा वैराग्य जगा दो !
तरलित निर्मल प्रीत हृदय की बाँट सकूँ ज्यों बहता पानी,
जो दो मैं सिर धरूँ किन्तु विचलन के आकुल पल मत देना
सारे सुख सारे सपने अपनी झोली में चाहे रख लो,
ऐसी करुणा दो अंतर में रहे न कोई पीर अजानी !
जैसा मैंने पाया उससे बढ़ कर यह संसार दे सकूँ,
निभा सकूँ निस्पृह अपना व्रत बस इतनी क्षमता भर देना !
आँसू की बरसात देखना अब तो सहा नहीं जाएगा,
दुख से पीड़ित गात देख कर मन को धीर नहीं आएगा !
सुख -दुख भेद न व्यापे ऐसी लगन जगा दो अंतर्यामी,
और कहीं अवसन्न मनस्थिति डिगा न दे वह बल भर देना !
ऐसी संवेदना समा दो हर मन मन में अनुभव कर लूँ
बाँटूँ हँसी जमाने भर को अश्रु इन्हीं नयनों में भर लूँ !
सिवा तुम्हारे और किसी से क्या माँगूँ मेरे घटवासी ,
जीवन और मृत्यु की सार्थकता पा सकूँ यही वर देना !
दो वरदान श्रमित हर मुख पर तृप्ति भरा उल्लास छलकता
निरउद्विग्न हृदय से ममता, मोह, छोह न्योछावर कर दो !