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आजु नाथ एक व्रत महा सुख लागत हे,<br />आहे तोहे शिव धरु नट भेष कि डमरू बजावथ हे।<br />तोहे गौरी कहई छी नाचय कि हम कोना क नाचब हे,<br />
चारी सोच मोही होय कि हम कोना बांचब हे।<br />अमिय चूई भूमि खसत बाघम्बर जागत हे,<br />आहे होयत बाघम्बर बाघ बसहो धरि खायत हे।<br />सिर स संसरत सांप कि भूमि लोटायत हे,<br />आहेकार्तिक आहे कार्तिक पोसल मयुर सेहो धरि खायत हे।<br />जटा स छलकत गंगा दसो दिस पाटत हे,<br />आहे होयत सहस्र मुख धार समेटलो नै जायत हे।<br />मुंडमाल छूटि खसत मसानी जागत हे,<br />आहेतोहेगौरी आहे तोहे गौरी जेबहु पराय कि नाच के देखत हे।<br />भनहि विद्यापति गाओल गावि सुनाओल हे,<br />आहे राखल गौरी के मान चारु बचावल हे।'''यह गीत श्रीमती रीता मिश्र की डायरी से ली गयी है.''' अमितेश
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