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'''वेदना गीत (जीवन दर्शन)''' (प्रेम का मार्मिक चित्रण) हो गये अब प्राण परिचित वेदने, तुमसे , मिल गया उर एक विरही, विरहणी तुमसे। तुम गई घर-घर किसी का उर प्रणय पाने, तुम फिरी वन-वन द्रुमों का आश्रय पाने, जिस तरह मुझको जगत में प्रेम मिल पाया नहीं। उस तरह ही तो तुम्हारा भी हृदय खिल पाया नहीं। वैदने , दुख के नगर में वह करूण परिचय, जब दृगों में हो निराशापुर्ण धन-संचय ।
सुख मैं जिसे समझता था वह दारूण दुख था,
निश्छल सा देखा मैने उस छल का मुख था।