Changes

(235)
 
ऐसेहि जनम-समूह सिराने।
 
प्राणनाथ रघुनाथ-से प्रभु तजि सेवत चरन बिराने।।
 
जे जड़ जीव कुटिल, कायर, खल, केवल कलिमल-साने।
 
सूखत बदन प्रसंसत तिन्ह कहँ, हरितें अधिक करि माने।।
 
सुख हित कोटि उपाय निरंतर करत न पायँ पिराने।
 
सदा मलीन पंथके जल ज्यों, कबहूँ न हृदय थिराने।।
 
यह दीनता दूर करिबेको अमित जतन उर आने।
 
तुलसी चित-चिंता न मिटै बिनु चिंतामनि पहिचाने।।
</poem>
Mover, Reupload, Uploader
7,916
edits