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{{KKRachna
|रचनाकार=चंद्र रेखा ढडवाल
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विध्वंस के कगार पर
स्तब्ध खड़ी
सेनाओं के मध्य
तुम हँस सके
मैं इसी से मानती हूँ कृष्ण!
तुम अवतार थे
मनुष्य नहीं थे
प्रभु थे
</poem>