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{{KKRachna
|रचनाकार=चंद्र रेखा ढडवाल
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तुम कहो
पर इस तरह
कि कहा हुआ तुम्हारा
उसे कटघरे में खड़ा करे
इस तरह नहीं
कि उघड़े हुए तुम्हारे
अंग-प्रत्यंग
वह परोस ले
एक बार फिर
अपने लिए</poem>