भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुझाई गयी कविताएं

1,175 bytes added, 09:58, 5 अक्टूबर 2007
--- --- प्रेषक - संजीव द्विवेदी ------<br>
- - - -- --- --- --- ---- ----- ------ ---- ---
 
 
कवि - गुलाम मुर्तुजा राही
 
छिप के कारोबार करना चाहता है
घर को वो बाज़ार करना चाहता है।
 
आसमानों के तले रहता है लेकिन
बोझ से इंकार करना चाहता है ।
 
चाहता है वो कि दरिया सूख जाये
रेत का व्यौपार करना चाहता है ।
 
खींचता रहा है कागज पर लकीरें
जाने क्या तैयार करना चाहता है ।
 
पीठ दिखलाने का मतलब है कि दुश्मन
घूम कर इक वार करना चाहता है ।
 
दूर की कौडी उसे लानी है शायद
सरहदों को पार करना चाहता है ।
 
 
प्रेषक - संजीव द्विवेदी -
 
--------- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -
Anonymous user