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सीस जटा सुन्दर बदन , उर बाहु बिसालसरसीरूह सुहाए नैन, बिलोचन लाल, तिरीछी -सी मौंहें। मंजुल प्रसून माथें मुकुट जटनि के।
तून अंसनि सरासन-बान धरें तुुलसी बन-मारगमें सुठि सोहैं। , लसत सुचि सर कर,
सादर बारहिं बार सुभायँ चितै तुम्ह त्यों हमरो मनु मोहैं। तून कटि , मुनिपट लूटक पटनि के।।
पूँछत ग्रामबधू सिय सोंनारि सुकुमारि संग, कहौजाके अंग उबटि कै, साँवरे-से सखि ! रावरे को हैं।21।
बिधि बिरचैं बरूथ बिद्युतछटनि के।।
सुनि सुंदर बैन सुधारस -साने सयानी हैं जानकीं जानी भली। गोरेको बरनु देखें सोनो न सलोनेा लागै,
तिरछे करि नैन, दै सैन तिन्है समुझाइ कछू , मुसकाइ चली।। साँवरे बिलोकें गर्ब घटत धटनि के।16।
तुलसी तेहिं औसर सोहैं सबै अवलोकति लोचनलाहु अलीं।
अनुराग -तड़ागमें भानु उदैं बिगसी मनो मंजुल कंजकलीं।22।
धरि धीर कहैंबलकल-बसन, चलु देखिअ जाइधनु-बान पानि, तून कटि, जहाँ सजनी! रजनी रहिहैं।
कहिहै जगु पोच , न सेाचु कछू ,फलु लोचन आपन तौ लहिहैं।रूपके निधान घन-दामिनी-बरन हैं।
सुखु पाइहैं कान सुनें बतियाँ कलतुलसी सुतीय संग, सहज सुहाए अंग, आपुस में कछु पै कहिहैं।।
तुलसी अति प्रेम लगीं पलकैंनवल कँवलहू तें केामल चरत हैं।। औरै सो बसंतु, पुलकीं और रति, औरै रतिपति, मूरति बिलोकें तन-मनके हरन हैं। तापस बेषै बनाइ पथिक पथें सुहाइ, चले लोकलोचननि सुफल करन हैं।17। बनिता बनी स्यामल गौर के बीच , लखि रामु हिए हैं।23। बिलोकहु, री सखि! मोहि-सी ह्वै। मनुजोगु न कोमल, क्यों चलिहै, सकुचाति मही पदपंकज छ्वै।। तुलसी सुनि ग्रामबधू बिथकीं,
पुलकीं तन, औ चले लोचन च्वै।
सब भाँति मनोहर मोहनरूप,
पद कोमल, स्यामल -गौर कलेवर राजत कोटि मनोज लजाऐँ। अनूप हैं भूपके बालक द्वै।18।
कर बान-सरासन, सीस जटा, सरसीरूह -लोचन सोन सुहाएँ।
जिन्ह देखे सखी! सतिभायहु तें तुलसी तिन्ह तौ मन फेरि न पाए। साँवरे-गोरे सलेाने सुभायँ, मनोहरताँ जिति मैनु लियो है।
ऐहिं मारग आजु किसोर बधू बिधुबैनी समेत सुभायँ सिधाए।24। बान-कमान, निषंग कसें, सिर सोहैं जटा, मुनिबेषु कियेा है।।
संग लिएँ बिधुबैनी बधू, रतिको जेहि रंचक रूप दियो है।
मुख पंकजपायन तौ पनहीं न , कंजबिलोचन मंजुपयादेहिं क्यों चलिहैं, मनोज-सरासन -सी बनीं भौंहें। सकुचात हियो है।19।
कमनीय कलेवर कोमल स्यामल-गौर किसोर, जटा सिर सोहैं।।
तुलसी कटि तूनरानी मैं जानी अयानी महा, धरें धनु बान, अचानक दिष्टि परी तिरछौंहें।। पबि-पाहनहू तें कठोर हियो है।
केहि भाँति कहौं सजनी! तोहि सों मृदु मरति द्वै निवसीं मन मोहैं।25।राजहुँ काजु अकाजु न जान्यो, कह्यो तियको जेहिं कान कियो है।।
ऐसी मनेाहर मूरति ए, बिछुरें कैसे प्रीतम लोगु जियो है।
आँखिनमें सखि! राखिबे जोगु , इन्हैं किमि कै बनबासु दियो है।20।
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