}}
{{KKCatNazm}}
<poem>आलम के बीच जिस घड़ी आती है शब-बरात ।शबबरात।क्या-क्या जहूरे <ref>प्रकट करना</ref> नूर <ref>प्रकाश</ref> दिखाती है शब-बरात ।।बरात॥देखे हैं बन्दिगी<ref>पूजा, इबादत</ref> में जिसे जागता तो फिर।फूली नहीं बदन में समाती है शब-बरात॥रोशन हैं दिल जिन्होंके इबादत के नूर से।उनको तमाम रात जगाती है शब-बरात॥
देखे है बन्दिगी बख़्शिश<ref>खैरात</ref> खु़दा की राह में जिसे जागता तो फिर करते हैं जो मुहिब<ref>प्रेमी</ref>।फूली नहीं बदन में समाती बरकत<ref>कल्याण</ref> हमेशा उनकी बढ़ाती है शब-बरात ।।बरात॥
रोशन हैं दिल जिन्हों ख़ालिक<ref>ईश्वर</ref> क बन्दिगी करो और नेकयों के इबादत के नूर से ।दम।उनको तमाम रात जगाती यह बात हर किसी को सुनाती है शब-बरात ।।बरात॥
बख्शिश ख़ुदा की राह में करते हैं जो मुहिब ।ग़ाफिल<ref>बेखबर</ref> न बन्दिगी से हो और खै़र से ज़रा।बरकत हमेशा उनकी बढ़ाती हर लहज़ा<ref>हर समय</ref> यह सभों को जताती है शब-बरात ।।बरात॥
ख़ालिक की बन्दिगी करो और नेकियों के दम ।हुस्ने अमल<ref>शुभ कार्य</ref> करके जो भला आक़िबत<ref>यमलोक</ref> में हो।सबको यह बात हर किसी को सुनाती नेक राह बताती है शब-बरात ।।बरात॥
गाफ़िल न बन्दिगी से हो और ख़ैर से ज़रा । हर लहज़ा ये सभों को जताती है शब-बरात ।। हुस्ने अमल करके जो भला आक़िबत में हो ।सबको यह नेक राह बताती है शब-बरात ।। लेकर हमीर हमज़ा के हर बार नाम को ।को।ख़ल्क़त <ref>संसार</ref> को उनकी याद दिलाती है शब-बरात ।।बरात॥ क्या-क्या मैं इस शब-बरात की खूंबी कहूँ ’नज़ीर’ ।खूबी कहूं ”नज़ीर“। लाखों तरह की ख़ूबियाँ खू़बियां लाती है हैं शब-बरात ।। बरात॥
</poem>
{{KKMeaning}}