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शब-बरात-2 / नज़ीर अकबराबादी

376 bytes added, 22:46, 20 मार्च 2011
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आलम के बीच जिस घड़ी आती है शब-बरात ।
क्या-क्या जहूरे <ref>प्रकट करना</ref> नूर <ref>प्रकाश</ref> दिखाती है शब-बरात ।।
देखे है बन्दिगी <ref>पूजा, इबादत</ref> में जिसे जागता तो फिर ।
फूली नहीं बदन में समाती है शब-बरात ।।
उनको तमाम रात जगाती है शब-बरात ।।
बख्शिश <ref>खैरात</ref> ख़ुदा की राह में करते हैं जो मुहिब <ref>प्रेमी</ref> ।बरकत <ref>कल्याण</ref> हमेशा उनकी बढ़ाती है शब-बरात ।।
ख़ालिक <ref>ईश्वर</ref> की बन्दिगी करो और नेकियों के दम ।
यह बात हर किसी को सुनाती है शब-बरात ।।
गाफ़िल <ref>बेख़बर</ref> न बन्दिगी से हो और ख़ैर से ज़रा । हर लहज़ा <ref>हर समय</ref> ये सभों को जताती है शब-बरात ।।
हुस्ने अमल <ref>शुभ कार्य</ref> करके जो भला आक़िबत <ref>यमलोक</ref> में हो ।
सबको यह नेक राह बताती है शब-बरात ।।
लेकर हमीर हमज़ा के हर बार नाम को ।
ख़ल्क़त <ref>संसार</ref> को उनकी याद दिलाती है शब-बरात ।।
क्या-क्या मैं इस शब-बरात की खूंबी कहूँ ’नज़ीर’ ।
लाखों तरह की ख़ूबियाँ लाती है शब-बरात ।।
</poem>
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