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बिहँसी ग्वालि जानि तुलसी प्रभु, सकुचि लगे जननी उर धाई।4।
 
 
(3)
 
जौलों हौं कान्ह रहौं गुन गोए।
 
तौलौं तुमहि पत्यात लोग सब, सुसुकि सभीत साँचु सो रोए।1।
हौं भले नँग-फँग परे गढ़ीबे, अब ए गढ़त महरि मुख जोएँ।
 
चुपकि न रहत, कह्यौ कछु चाहत, ह्वैहै कीच कोठिला धोएँ।2।
 
गरजति कहा तरजिनिन्ह नरजति, बरजत सैन नैन के कोए।
 
तुलसी मुदित मातु सुत गति लखि, विथकी है ग्वालि मैन मन मोए।3।
 
 
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