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शंबूक का कटा सिर / ओमप्रकाश वाल्मीकि
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21:28, 22 मार्च 2011
जब भी मैंने
किसी घने वृक्ष की छाँव में बैठकर
घडी
घड़ी
भर सुस्ता लेना चाहा
मेरे कानों में
भयानक चीत्कारें गूँजने लगी
अनिल जनविजय
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