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(राग सारंग)

तपन लाग्यौ घाम, परत अति धूप भैया, कहँ छाँह सीतल किन देखो ।
भोजन कूँ भई अबार, लागी है भूख भारी, मेरी ओर तुम पेखो ॥
बर की छैयाँ, दुपहर की बिरियाँ, गैयाँ सिमिट सब ही जहँ आवै ।
’नंददास’ प्रभु कहत सखन सों, यही ठौर मेरे जीय भावै ॥
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