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|संग्रह=कुछ कविताएँ / शमशेर बहादुर सिंह
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चांद चाँद निकला बादलों से पूर्णिमा का।: गल रहा है आसमान।
एक दरिया उबलकर पीले गुलाबों का
: चूमता है बादलों के झिलमिलाते: स्वप्न जैसे पाँव।
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