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Kavita Kosh से
|रचनाकार=कुमार मुकुल
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<poem>भादो की ढलती इस साँझ
लगातार हो रही है बारिश
हल्की
दीखती बमुश्किल
उसकी आवाज़ सुनने को
धीमा करता हूं पंखा
पत्तों से, छतों से आ रही हैं
टपकती बड़ी बूंदों की
टप-चट-चुट की आवाज़ें
छुपे पक्षी निकल रहे हैं
अपने भारी-भीगते पंखों से
कौए भरते हाँफती उड़ान
उधर लौट रहा मैनाओं का झुंड
अपेक्षाकृत तेज़ी से
पंखों पर जम आती बूदों को
झटकारता।
</poem>