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Kavita Kosh से
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मुझे आई ना जग से लाज
मैं इतना ज़ोर से नाची आज, की के घुंघरू टूट गए
कुछ मुझ पे नया जोबन भी था
कुछ प्यार का पागलपन भी था
एक जुल्फ मेरी ज़ंजीर बनी
लिया दिल साजन का जीत
मैं बसी थी जिसके सपनों में
वो गिनेगा अब मुझे अपनों में
कहती है मेरी हर अंगडाईअंगड़ाई
मैं पिया की नींद चुरा लायी
मैं बन के गई थी चोर
धरती पे ना मेरे पैर लगे
जब मिला पिया का गाँव
तो ऐसा लचका मेरा पांव
के घुंघरू टूट गए
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