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|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह=मृत्यु-बोध / महेन्द्र भटनागर
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रोना नहीं,
 
दीन-निरीह होना नहीं !
 
 
आघात सहना,
 
संयमित रहना।
 
आडम्बरों से मुक्त
 
अन्तिम कर्म हो,
 
ध्यान में बस
 
पारलौकिक-पारमार्थिक मर्म हो !
 
मृत्यूपरान्त जगत व जीवन
 
 
न जाना किसी ने
 
न देखा किसी ने ....
 
निर्धारित व्यवस्थाएँ समस्त
कपोलपोल-कल्पित है, 
सब अतर्कित हैं।
 
अनुसरण उनका अवांछित है !
 
अंधानुयायी रे नहीं बनना,
 
ज्ञान के आलोक में
 
हो संस्कार-पूत उपासना।
 
 
आदेश यह
 
सद्धर्म सद्भावना।
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