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Kavita Kosh से
{{KKRachna
|रचनाकार=अष्टभुजा शुक्ल
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कराह सुनकर
जो न टूटे
नींद नहीं,
मृत्यु है
चाहे जितना थका हो आदमी
और चाहे जब सोया हो ।
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