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{{KKRachna
| रचनाकार=रमा द्विवेदी
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<poem>
तन-मन में लागयो अगनवा
ए.सी. लाय दईबो सजनवा।
जेठ-दुपहरी करेजवा जरावै,
काहै को लाए गवनवा..
ए.सी. लाय दईबो सजनवा।
सोलह श्रृंगार टप-टप टपक रह्यो,
तर-बतर है बदनवा..
ए. सी. लाय दईबो सजनवा।
अंगिया उमसे, सेजरिया चुभै है,
कैसे हुयहै मिलनवा...
ए. सी. लाय दईबो सजनवा।
ताल-तलैया-पोखरवा सिमट गए,
कैसे बुझाऊँ तपनवा..
ए. सी. लाय दईबो सजनवा।
जियरा आवै मूरत बन जाऊँ,
खजुराहो दिखे मोरे तनमा..
ए. सी. लाय दईबो सजनवा।
कामदेव ने प्रत्यंचा चढ़ाई,
गर्मी से निढाल मदनवा...
ए. सी. लाय दईबो सजनवा।
<poem>
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