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{{KKRachna
| रचनाकार=रमा द्विवेदी
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स्वागत तेरा नववर्ष है,स्वागत तेरा नववर्ष है॥
आगमन पर तेरे जन-जन के मन में हर्ष है।
सूर्य अपनी ऊष्मा धरती को है दे रहा
चांद अपनी चांदनी को नेह से भिगो रहा।
तारे सलाम कर रहे चहु ओर जैसे पर्व है,
स्वागत तेरा नववर्ष है,स्वागत तेरा नववर्ष है॥
नेह का अनुबंध सृष्ठि का प्रथम अध्याय है,
इंसान की इंसानियत भी प्रेम का पर्याय है,
प्रेम से ही ज़िन्दगी है, प्रेम से उत्कर्ष है
स्वागत तेरा नववर्ष है,स्वागत तेरा नववर्ष है॥
पर्वतों की अलसाई भोर चुपके से कुछ कह रही,
लग रहा ज्यों प्रकृति-दुल्हन अंगड़ाई ले उठ रही,
पवन करे अठखेलियां ज्यों रच रहा नवसर्ग है।
स्वागत तेरा नववर्ष है,स्वागत तेरा नववर्ष है॥
<poem>
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