भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=वृन्द}}[[नीति के Category:दोहे / वृन्द]] <br>
'''नीति के दोहे'''
उद्यम कबहूँ न छाड़िये, पर आसा के मोद । <br>
गागर कैसे फोरिये, उनयो देकै पयोद ॥22 <br><br>
हितहू भलो न नीच को, नाहिंन भलो अहेत ।<br>
चाट अपावन तन करै, काट स्वान दुख देत ॥ 24<br><br>
हीन अकेलो ही भलो, मिले भले नहिं दोय । <br>
जैसे पावक पवन मिलि, बिफरै हाथ न होय ॥ 26<br><br>
हिये दुष्ट के बदन तैं , मधुर न निकसै बात ।<br>जैसे करुई बेल के ,को मीठे फल खात ॥29॥ 29<br><br>
ताही को करिये जतन ,रहिये जिहि आधार ।<br> को काटै ता डार को ,बैठै जाही डार ॥30॥ 30<br><br>