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वृन्द के दोहे / भाग ३

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=वृन्द}}[[नीति के Category:दोहे / वृन्द]] <br>
'''नीति के दोहे'''
{{KKGlobal}}कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर । <br>समय पाय तरुवर फरै, केतिक सींचौ नीर ॥21 <br><br>
उद्यम कबहूँ न छाड़िये, पर आसा के मोद । <br>
गागर कैसे फोरिये, उनयो देकै पयोद ॥22 <br><br>
[[वृन्द]] क्यों कीजे ऐसो जतन, जाते काज न होय । <br>परबत पर खोदै कुआँ, कैसे निकरै तोय ॥ 23<br><br>
हितहू भलो न नीच को, नाहिंन भलो अहेत ।<br>
चाट अपावन तन करै, काट स्वान दुख देत ॥ 24<br><br>
[[दोहे]] चतुर सभा में कूर नर, सोभा पावत नाहिं । <br>जैसे बक सोहत नहीं, हंस मंडली माहिं ॥ 25 <br><br>
हीन अकेलो ही भलो, मिले भले नहिं दोय । <br>
जैसे पावक पवन मिलि, बिफरै हाथ न होय ॥ 26<br><br>
[[वृन्द]] फल बिचार कारज करौ, करहु नव्यर्थ अमेल । <br>तिल ज्यौं बारू पेरिये, नाहीं निकसै तेल ॥ 27<br><br>
 ~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~  {{KKGlobal}}<br> कारज धीरे होत है ,काहे होत अधीर । <br>समय पाय तरुवर फरै ,केतिक सींचौ नीर ॥21 <br> उद्यम कबहूँ न छाड़िये , पर आसा के मोद । <br>गागर कैसे फोरिये ,उनयो देकै पयोद ॥22 <br> क्यों कीजे ऐसो जतन ,जाते काज न होय । <br>परबत पर खोदै कुआँ , कैसे निकरै तोय ॥ 23<br> हितहू भलो न नीच को ,नाहिंन भलो अहेत ।<br>चाट अपावन तन करै ,काट स्वान दुख देत ॥24<br> चतुर सभा में कूर नर ,सोभा पावत नाहिं । <br>जैसे बक सोहत नहीं ,हंस मंडली माहिं ॥25 <br> हीन अकेलो ही भलो , मिले भले नहिं दोय । <br>जैसे पावक पवन मिलि ,बिफरै हाथ न होय ॥ 26<br> फल बिचार कारज करौ ,करहु नव्यर्थ अमेल । <br>तिल ज्यौं बारू पेरिये,नाहीं निकसै तेल ॥ 27<br> ताको अरि का करि सकै ,जाकौ जतन उपाय ।<br>जरै न ताती रेत सों ,जाके पनहीं पाय ॥ 28<br><br>
हिये दुष्ट के बदन तैं , मधुर न निकसै बात ।<br>जैसे करुई बेल के ,को मीठे फल खात ॥29॥ 29<br><br>
ताही को करिये जतन ,रहिये जिहि आधार ।<br> को काटै ता डार को ,बैठै जाही डार ॥30॥ 30<br><br>