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18:07, 10 अप्रैल 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जयकृष्ण राय तुषार
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<poem>
कब लौटोगी 
कथा सुनाने 
ओ सिंदूरी शाम |
रीत गयी है 
गन्ध संदली 
शोर हवाओं में ,
चुटकी भर 
चांदनी नहीं है 
रात दिशाओं में ,
टूट रहे 
आदमकद शीशे 
चीख और कोहराम |
माथे बिंदिया 
पांव महावर 
उबटन अंग लगाने ,
जूडे चम्पक 
फूल गूंथने 
क्वांरी मांग सजाने ,
हाथों में 
जादुई छड़ी ले 
आना मेरे धाम |
बंद हुई 
खिड़कियाँ ,झरोखे 
तुम्हें खोलना है ,
बिजली के 
तारों पर 
नंगे पांव डोलना है ,
प्यासे होठों पर 
लिखना है 
बौछारों का नाम |
</poem>