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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज़िया फतेहाबादी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> अहसास को …
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{{KKRachna
|रचनाकार=ज़िया फतेहाबादी
|संग्रह=
}}
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अहसास को ज़ुबां न मिली किस तरह कहूँ
कैफ़ियत ए लतीफ़ जो रंज ओ मुहन में है |
शरह ओ बयान ए ग़म की इजाज़त मिली मगर
अपनी ख़बर ही किस को तेरी अन्जुमन में है |
ताब ए नज़र अगर हो तमाशा करें कलीम
अब हर तरफ़ ज़िया ही " ज़िया " अन्जुमन में है |
</poem>
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अहसास को ज़ुबां न मिली किस तरह कहूँ
कैफ़ियत ए लतीफ़ जो रंज ओ मुहन में है |
शरह ओ बयान ए ग़म की इजाज़त मिली मगर
अपनी ख़बर ही किस को तेरी अन्जुमन में है |
ताब ए नज़र अगर हो तमाशा करें कलीम
अब हर तरफ़ ज़िया ही " ज़िया " अन्जुमन में है |
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