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{{KKRachna
|रचनाकार=ज़िया फतेहाबादी
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अभी उम्मीद ए क़रार ओ सुकूँ नहीं मुझको |
अभी तो इश्क़ के देने हैं इम्तिहाँ मुझको |

कभी गुलों कभी मौजों कभी सितारों में
तलाश ए हुस्न तो रखती है सरगराँ मुझको |

न दैर में न हरम में झुकी जबीन ए नियाज़
कहीं तो मिलता तेरा सँग ए आस्ताँ मुझको |

अज़ल में जब हुई तक़सीम ए आलम ए फ़ानी
बतौर ए ख़ास मिला सोज़ ए जाविदाँ मुझको |

मेरे बगैर " ज़िया " कारवाँ रवाना हुआ
मिली अमाँ तो तह ए गरद ए कारवाँ मुझको |
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