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{{KKRachna
| रचनाकार=रमा द्विवेदी
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<poem>

किसी को क्या बताएं कब हमारा दम निकलता है,
अगर उनको भुलाएं हम हमारा दम निकलता है॥

यह उनके रूप का जादू पिये बिन ही बहकते हम,
नशा गर यह न पाएं हम हमारा दम निकलता है॥

ये आंखें बोलतीं उनकी,जुबां रस घोलती उनकी,
अगर ये मौन हो जाएं हमारा दम निकलता है॥

घनेरी काली जुल्फ़ों संग नहीं है धूप की चिन्ता,
घटा बन गर बरस जाएं हमारा दम निकलता है॥

ये मीठे से गिले-शिकवे बहुत नीके लगें मन को,
मगर जब रूठ जाएं ये हमारा दम निकलता है॥

अदा प्यारी लगे उनकी इक सदा पर दौड़े आते है,
सहारा गर न पाएं हम हमारा दम निकलता है॥

अंधेरे गहरे सागर में पुतलियां मीन सी तिरतीं,
कहीं जब चांद न पाएं हमारा दम निकलता है ॥
< poem>
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