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{{KKRachna
| रचनाकार=रमा द्विवेदी
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उसने कहा क्यों प्यार का इज़हार नहीं करते?
हमने कहा चुप रह के क्या इक़रार नहीं करते?

तूफ़ां की तरह आके गुजर जाना भी अच्छा नहीं
हम प्यार की कश्ती को मझधार नहीं करते।

लेबेल लगा के प्यार को बाज़ार कर दिया,
यह इश्क है ज़नाब, इश्तहार नहीं करते।

इज़हार करने वालों की फ़ेहरिस्त बड़ी लंबी है,
इक़रार करने वाले भी तो सच्चा प्यार नहीं करते।

ढ़ाई आखर प्रेम को दिल में उतार लो,
बस ताजमहल देख कर सरताज नहीं बनते।

इश्क में मिट जाने का ग़र इल्म नहीं आया,
खुदा से ऐसे लोग कभी प्यार नहीं करते ।
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