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अनमने दिन / अनिल जनविजय

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|रचनाकार=अनिल जनविजय
}}
 
 
दिन बीते
 
रीते-रीते
 
इन सूनी राहों पे
 
 
मिला न कोई राही
 
बना न कोई साथी
 
वन सूखे चाहों के
 
 
याद न कोई आता
 
न मन को कोई भाता
 
घेरे खाली हैं बाहों के
 
 
कलप रहा है तन
 
जैसे भू-अगन
 
दिन आए फिर कराहों के
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