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Kavita Kosh से
नौकर चाकर तुम नाहीं हौ। तुम सब भैया लगौ हमार।
पाँव पिछाडी को ना धरियो। यारौ रखियो धर्म हमार॥
सन्मुख लडिकै जो मरि जैहो। हृइहै हुइहै जुगन-जुगन लौं नाम।
दै-दै पानी रजपूतन को। ऊदनि आगे दियो बढाय॥
झुके सिपाही महुबे वारे। जिनके मार-मार रट लागि।