गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
कोई इस शहर में अपना नज़र आता ही नहीं / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
201 bytes added
,
17:50, 23 अप्रैल 2011
"आईना तूने कभी गौर से देखा ही नहीं"
मुंबई शहर की मिट्टी की है तासीर अजब
जो 'रक़ीब' आता है वो लौट के जाता ही नहीं
मिक़नातीसी
सी
है ये मुंबई की खाक 'रक़ीब'
जो यहाँ आता है वो लौट के जाता ही नहीं
</poem>
SATISH SHUKLA
490
edits