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पहली-पहली बार
दुनिया बड़ी होगी एक कदम क़दम आगे जिसके कदमों क़दमों पर अंसतोषी रहा होगा वह पहला।पहला ।
किसी असंतुष्ट ने ही देखा होगा
पहली बार संुदर सुंदर दुनिया का सपना
पहिए का विचार आया होगा
किसी असंतोषी ने ही ।
असंतुष्टों ने ही लाॅघे लाँघे पर्वत , पार किए समुद्र
खोज डाली नई दुनिया
असंतोष से ही फूटी पहली कविता
असंतोष से एक नया धर्म
इतिहास के पेट में
उन्हीं से गति है
उन्हीं से उष्मा
उन्हीं से यात्रा पृथ्वी से चाॅदचाँद
और
पहिए से जहाज तक की
असंतुष्टों के चलते ही
सुंदर हो पाई है यह दुनिया इतनी
असंतोष के गर्भ से ही
पैदा हुई संतोष करने की कुछ स्थितियाॅ स्थितियाँ ।
फिर क्यांेक्यों
सत्ता घबराती है असंतुष्टों से
सबसे अधिक
क्या इसीलिए कहा गया होगा है संतोषम् परम् सुखम् ।</poem>