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विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 19

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{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसीदास
}}{{KKCatKavita}}[[Category:लम्बी रचना]]{{KKPageNavigation|पीछे=विनयावली() * [[पद 181 से 190 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 181]]|आगे=विनयावली() * [[पद 181 से 190 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 202]]|सारणी=विनयावली() * [[पद 181 से 190 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 3]]}}<poem>'''* [[पद 181 से 190 तक''' (181) श्री केहू भाँति कृपासिंधु मेरी ओर हेरिये।  मोको और ठौर न, सुटेक एक तेरिये। सहस सिलातें अति जड़ मति भई है।  कासों कहौं कौन गति पाहनहिं दई है। / तुलसीदास/ पृष्ठ 4]]* [[पद-राग-जाग चहौं कौसिक ज्यों कियो हौं।  कलि-मल खल देखि भारी भीति भियो हैा। करम -कपीस बालि-बली,त्रास-त्रस्यो हौं।  चाहत अनाथ-नाथ! तेरी बाँह बस्यो हौ।  महा मोह-रावन बिभीषन ज्यों हयो हौ।  त्राहि, तुलसिदास! त्राहि, तिहूँ ताप तयो हौ। <181 से 190 तक /poem>तुलसीदास/ पृष्ठ 5]]
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