Changes

विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 20

1,091 bytes removed, 13:29, 28 अप्रैल 2011
{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसीदास
}}{{KKCatKavita}}[[Category:लम्बी रचना]]{{KKPageNavigation|पीछे=विनयावली() * [[पद 191 से 200 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 191]]|आगे=विनयावली() * [[पद 191 से 200 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 212]]|सारणी=विनयावली() * [[पद 191 से 200 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 3]]}}<poem>'''* [[पद 191 से 200 तक''' (194)जे अनुराग न राम सनेही सों। / तुलसीदास/ पृष्ठ 4]] तौ लह्यों लाहु कहा नर-देही सो।  जो तनु धरि, परिहरि सब सुख, भये सुमति राम-अनुरागी।  सो तनु पाइ अघाइ किये अघ, अवगुन-उदधि अभागी।।  ग्यान, बिराग, जोग, जप, तप, मख, जग मुद-मग नहिं थोरे।  राम-प्रेमबिनु नेम जाय जैसे मृग -जल-जलधि-हिलोरे।।  लोक-बिलोकि, पुरान-बेद सुनि, समुझि-बूझि गुरू ग्यानीप्रीति-प्रतीति राम-* [[पद -पंकज सकल-सुमंगल-खानी।।  अजहुँ जानि जिय, मानि हारि हिय, होइ पलक महँ नीको।  सुमिरू सनेहसहित हित रामहिं, मानु मतो तुलसीको।।<191 से 200 तक /poem>तुलसीदास/ पृष्ठ 5]]
Mover, Reupload, Uploader
7,916
edits