'''जब उजाले की कहीं'''
जब उजाले की कहीं कोई, किरण दिखती नहीं,
तितमिरदंशित तिमिरदंशित सरहदों को पार हम कैसे करें?
हर गली में हो रहे हैं
तिमिरदंशित सरहदों को पार हम कैसे करें?
इनद्रधनुषी इन्द्रधनुषी करतबों में बात की बाजीगरी पंख नुचने से हुयी है आज चिडिया चिड़िया अधमरी
व्यथित मन में जब नयी सम्भावना खिलती नहीं
तिमिरदंशित सरहदों को पार हम कैसे करें?
चांदनी के नाम पर बंटती
हर कहीं पर दोपहर
घुल गये संवेदना में
स्वार्थ के मीठे जहर,
लेखनी भी मन हमारे अब अनल भरती नहीं,
तिमिरदंशित सरहदों केा को पार हम कैसे करें?
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