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विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 24

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{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसीदास
}}{{KKCatKavita}}[[Category:लम्बी रचना]]{{KKPageNavigation|पीछे=विनयावली() * [[पद 231 से 240 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 231]]|आगे=विनयावली() * [[पद 231 से 240 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 252]]|सारणी=विनयावली() * [[पद 231 से 240 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 3]]}}<poem>'''* [[पद 231 से 240 तक'''  (235)/ तुलसीदास/ पृष्ठ 4]] ऐसेहि जनम-समूह सिराने।  प्राणनाथ रघुनाथ-* [[पद 231 से प्रभु तजि सेवत चरन बिराने।।  जे जड़ जीव कुटिल, कायर, खल, केवल कलिमल-साने।  सूखत बदन प्रसंसत तिन्ह कहँ, हरितें अधिक करि माने।।  सुख हित कोटि उपाय निरंतर करत न पायँ पिराने।  सदा मलीन पंथके जल ज्यों, कबहूँ न हृदय थिराने।।  यह दीनता दूर करिबेको अमित जतन उर आने।  तुलसी चित-चिंता न मिटै बिनु चिंतामनि पहिचाने।। <240 तक /poem>तुलसीदास/ पृष्ठ 5]]
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