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विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 25

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{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसीदास
}}{{KKCatKavita}}[[Category:लम्बी रचना]]{{KKPageNavigation|पीछे=विनयावली() * [[पद 241 से 250 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 241]]|आगे=विनयावली() * [[पद 241 से 250 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 262]]|सारणी=विनयावली() * [[पद 241 से 250 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 3]]}}<poem>'''* [[पद 241 से 250 तक'''/ तुलसीदास/ पृष्ठ 4]](245) मेहि मूढ़ मन बहुत बिगोयो।  याके लिये सुनहु करूनामय, मैं जग जनमि-जनमि दुख रोयो।।  सीतल, मधुर, पियूष सहज सुख निकटहि रहत दूरि जनु खोयो।  बहु भाँतिन स्त्रम करत मोहबस,बृथहि मंदमति बारि बिलोयो।।  करम-कीच जिय जानि, सानिचित, चाहत कुटिल मलहि मल धोयो।  तृषावंत सुरसरि बिहाय सठ फिरि-फिरि बिकल अकास निचोयो।।  तुलसिदास प्रभु! कृपा करहु अब, मैं निज दोष कछू नहिं गोयो।  डासत ही बीति गयी निसा सब, कहहूँ न नाथ! नींद भरि सोयो।। <* [[पद 241 से 250 तक /poem>तुलसीदास/ पृष्ठ 5]]
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