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{{KKRachna
| रचनाकार=रमा द्विवेदी
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कौन किसके दर्द में कोई रोता है?
आदमी अपना दर्द खुद ही ढ़ोता है॥

वे आए हाल पूछने औपचारिकता वश।
बस इसके बाद उनका अता-पता न होता है॥

सने वाले के साथ सभी हंसते हैं ।
रोने के लिए किसका जिगर बड़ा होता है?

न रखो जमाने से हमदर्दी की उम्मीद कोई।
क्योंकि जमाना सदा ही बेदर्द होता है ॥

अगर मिटाना हो दर्द तो एक दर्द और ले लो।
हर दर्द का इलाज बस यही होता है ॥

पियो दर्द को और पियो जीभर कर ।
इस प्रसव के बाद ही तो सृजन होता है ॥

न फैलाओ कभी मदद के लिए हाथ रमा।
खुद की ही शक्ति का संबल बड़ा होता है॥
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