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<poem>
रावण ओर मंदोदरी
 
'''( छंद संख्या 17 से 18 )'''
 
(17)
 
कनकगिरिसृंग चढ़ि देखि मर्कटकटकु,
बदत मंदोदरी परम भीता।
(18)
 
रे नीचु! मरीचु बिचलाइ, हति ताड़का,
भंजि सिवचापु सुखु सबहि दीन्हों ।
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