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|रचनाकार=कीर्ति चौधरी |संग्रह=’तीसरा सप्तक’ में शामिल रचनाएँ / कीर्ति चौधरी
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लतरें हैं, ख़ुशबू है,पौधे हैं, फूल हैं ।
ऊँचे दरख़्त कहीं, झाड़ कहीं ,शूल हैं ।
लतरें हैं, ख़ुशबू है,पौधे हैं, फूल हैं।<br>ऊँचे दरख़्त कहीं, झाड़ कहीं ,शूल हैं।<br>लान में उगायी उगाई तरतीबवार घास है।<br>है ।इधर-उधर बाक़ी सब मौसम उदास है।<br>है । आधी से ज़्यादा तो ज़मीन बेकार है।<br>है ।उगे की सुरक्षा ही माली को भार है।<br>है । लोहे का फाटक है, फाटक पर बोर्ड है।<br>है ।दृश्य कुछ यह पुराने माडल की फ़ोर्ड है।<br>है । भँवरों का, बुलबुल का, सौरभ का भाग है।<br>है ।शहर में हमारे यही कम्पनी बाग़ है।<br>है ।<br/poem>
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