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Kavita Kosh से
उन दिनों बहुत कम बाहर आना होता था अपने डूबने की जगह से । धूप की तरह आगे-आगे सरकती जाती थी मौत, प्रायः वह खिन्न दिखाई देती । चाँद नीचे झाँकता भी तो फिर घबराकर अपनी राह पकड़ लेता, फूल उदास रहते । खिड़की कोई बंद दिखाई देती तो चाहते खड़े होकर उसे देखते रहें देर तक, देर जब तक शाम उतर न आए ।
डूबने से बाहर आते तो बाहर का एक अनुवाद चाहिए होता । इस बीच लोगों के मरने और विवाह करने की ख़बरें होतीं । होतीं।
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