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<Poem>
पुराने मंदिर के प्रांगण में
कुमुद<ref>कमल का फूल</ref> का तालाब है
रास्ते के किनारे
पूजा के सामान बेचते हैं लोग
यहाँ देवता पर
कमल कुमुद के फूल चढ़ाए जाते हैं...
गाइड जानकारी देता है
एक कोने में खड़ा
उस बच्ची की आवाज़ अब कम सुनाई पड़ती है
मेरे हाथों से मेरा फूल...
 
यहाँ की मिटटी में
धंसी हुई है क्या
स्वर्गिक ख़ुशी
अभी तक नहीं मिली है जो
जब थककर
मैं लौट आया वहाँ से
तो दीया बुझ गया
वहाँ पड़े रह गए बस सफ़ेद फूल
और कुमुद बेचती वह बच्ची
'''मूल मलयालम से अनुवाद : संतोष अलेक्स'''
</poem>
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